कहानी सब्जीपुर की राज कुमार कांदु द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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कहानी सब्जीपुर की




सब्जीपुर के युवराज ‘ आलू चंद ‘ की विवाह योग्य उम्र होते ही राज्य के सभी मंत्री , दरबारी उनके लिए सुयोग्य नायिका की खोज में लग गए ।
सब्जी पुर की कई यौवनाएँ मन ही मन आलूचन्द के सपने देखती थीं । लेकिन अपनी छोटी सी हैसियत देखकर उन्हें अपना मन मसोस कर रह जाना पड़ता था । दरबारी पंडित लौकी चंद ने अपने दूर के रिश्तेदार की बेटी कद्दू से आलूचन्द के रिश्ते की बात चलाई । दोनों पक्षों की आपसी सहमति में यह तय हुआ कि एक नजर भावी वर व वधू एक दूसरे को देख परख लें , और यदि दोनों की सहमति मिलती है तो आगे धूमधाम से दोनों का शुभविवाह कर दिया जाएगा । वर वधू को मिलवाने की तैयारी पूरी हो गयी । दोनों पक्षों की तरफ से मान्यवरों की उपस्थिति में वधू ‘ कद्दू कुमारी ‘ को बुलवाया गया ।
‘ गाजर , मुली , और सुकुमार लचकती हुई धनिया के संग शर्म से लाल होती जा रही चुकंदर भी सखियों के रूप में ‘ कद्दू कुमारी ‘ के संग ही सधे कदमों से उस तरफ बढ़ रही थी जहां ‘ आलूचन्द ‘ टमाटर , परवल , बैंगनलाल सहित सभी रिश्तेदारों व हितैषियों के साथ बैठा हुआ था । उनकी मार्गदर्शक राजमाता ‘ गोभिदेवी ‘ भी इस सुअवसर पर आलूचन्द का उत्साहवर्धन करने के लिए उपस्थित थीं ।
कद्दू कुमारी अपनी सहेलियों संग आलूचन्द के कक्ष की तरफ बढ़ रही थी और अभी वह उसके कमरे से बहुत दूर थी कि तभी आलूचन्द की नजर कन्यापक्ष के मेहमानों की भीड़ में एक पतली सी बहुत ही खूबसूरत दिख रही ताजी सी सब्जी ‘ भिंडी कुमारी ‘ पर पड़ी । पहली नजर में ही आलूचन्द उस खूबसूरत सी भिंडी कुमारी पर मर मिटा । आनन फानन उसने दरबारी पंडित लौकी चंद को अपने दिल की बात बताते हुए कहा ” मैं विवाह करूँगा तो इस भिंडी कुमारी से ही वरना किसी से भी नहीं । चाहे भले ही सारी उम्र कुंवारा ही रह जाऊं । “
पंडित लौकी चंद ने खुशामद करने वाले स्वर में कहा ” इसमें कौन सी बड़ी बात है ? मैं अभी उससे तुम्हारे रिश्ते की बात चलाता हूँ । “
कहकर लौकी चंद कन्यापक्ष के मेहमानों की भीड़ में भिंडी कुमारी की तरफ बढ़ गया ।
इतने में कद्दू कुमारी का अपनी सहेलियों के साथ उस विशेष कक्ष में आगमन हो गया । लेकिन आलूचन्द का पूरा ध्यान तो भिंडी कुमारी की तरफ लगा हुआ था । अचानक उसे उठकर अपनी तरफ बढ़ते देखकर आलूचन्द की धड़कनें खुशी के मारे सामान्य से तेज हो गईं । उसे लगा पंडित लौकिचन्द की बात मानकर वह उसके पास अपनी सहमति जताने आ रही है । लेकिन यह क्या ? अगले ही पल गुस्से में तमतमाई भिंडी कुमारी अपनी पतली कमर पर एक हाथ रखे बड़े तैश में सबके सामने आलूचन्द को डपट रही थी ” बड़े आये मुझसे शादी करनेवाले । कभी अपनी शक्ल भी देखी है ? ये गोल मटोल और बीच बीच में दागदार चेहरा और जिस्म देखो तो कई जगह कूबड़ सा निकला हुआ है और सपने देख रहे हैं मुझ जैसी हसीन खूबसूरत कमसिन सब्जी का । अरे तुझे तो कद्दू कुमारी पसंद कर ले तो भी तेरा नशीब अच्छा है यही समझना । बड़े आये हैं ……” बड़बड़ाती भिंडी कुमारी भीड़ में से रास्ता बनाती बड़ी अदा से वहां से चली गयी । उसका संक्षिप्त सा भाषण सुनकर आलूचन्द स्तब्ध रह गया । लेकिन अगले ही पल खुद को संभालते हुए वह भी तैश में उठा और अपने साथियों के साथ उठकर अपने वाहन में सवार होकर वहां से चले आया ।
खुशी का माहौल अचानक अफरातफरी के माहौल में बदल गया । पूरे वाकये से अनजान कद्दुकुमारी और उसकी सहेलियों व परिजनों को आलूचन्द का यूं चले जाना अपनी घोर बेइज्जती महसूस हुई ।
लौकिचन्द के स्पष्टीकरण के बाद तो उनका गुस्सा लौकिचन्द पर ही फुट पड़ा और वादाखिलाफी के आरोप में उन लोगों ने लौकिचन्द को अपने ही खेमे में बंधक बना लिया ।
कहते हैं इस वाकये के बाद से ही सब्जियों के दो समूह बन गए । आज भी आलू चंद अपने साथियों टमाटर लाल , राजमाता गोभी देवी , परवल कुमार , बैंगनलाल , मटरु चंद जैसी सब्जियों के समर्थन से बहुमत के आधार पर सब्जी पुर की सत्ता का राजा के रूप में उपभोग कर रहा है जबकि कद्दू कुमारी के परिजन आज भी लौकिचन्द व भिंडी कुमारी को सारे फसाद की जड़ मानते हुए इन्हें अपने आस पास फटकने भी नहीं देते । सभी परिजनों में भी अविश्वास इस कदर बढ़ गया है कि ये आपस में भी मिलना जुलना बंद कर चुके हैं ।
शायद तभी से आलूचन्द अपने परिजनों के साथ मिलकर लाजवाब सब्जी का स्वाद उत्पन्न कर देता है और सब्जियों का राजा कहलाने का गौरव पाता है जबकि दूसरी तरफ कद्दुकुमारी , भिंडी कुमारी , लौकिचन्द , चुकंदर , जैसी सब्जियां आपस की दुश्मनी की वजह से आज भी अकेले अकेले ही पकाई जाती हैं और सिर्फ अपने ही गुणों से पहचानी जाती हैं । यह विडंबना ही है कि अधिक से अधिक लोगों की पसंद कद्दुकुमारी के परिजन व उसके खेमे की सब्जियां करेला , नेनुआ , व तुरीया जैसी दर्जनों सब्जियों का नैतिक समर्थन हासिल करने के बावजूद सिर्फ आपसी फूट के चलते विपक्ष में रहने को अभिशप्त हैं जबकि आलूचन्द अपने चंद साथियों के दम पर ही अपने मिलनसार व विनम्र स्वभाव के चलते तेल व मसालों का भी भरपूर समर्थन पाकर सब्जीपुर पर लगातार शासन कर रहा है ।